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Yogesh |
दैनिक जागरण के दीपक जोशी जी अपने ब्लॉग पर लिखते है की
पढ़ाई शुरु होने से लेकर पढ़ाई खत्म होने तक ,जो भी गणित पढ़ाई गई थी, उसमें सिर्फ यही पढ़ा था कि “दो धन दो चार होता है।”
यह सिर्फ हमनें ही नहीं सभी ने पढ़ा होगा। लेकिन यह दो+दो=चार में “भष्ट” कब जुड़ा पता ही नहीं चला ।
कहते है कि बूंद बूंद से मटका भरता है ….और शायद उसी तरह से यह भष्टाचार धीरे-धीरे पूरे समाज में भर चुका है।।
आज हमारा समाज इस भष्टाटचार के दलदल में इतना धंस चुका है कि हर वर्ग का इन्सान काफी हद तक इसकी चपेट में आ चुका है।
“भष्टाचार”, मैं इस शब्द कि व्याख्या तो नहीं कर पाऊँगा, पर मुझे लगता है कि यह एक ऐसी बिमारी है, जो आज एक छोटे से चाय के ढाबेवाले से लेकर किसी बड़ी कम्पनी के अधिकारी तक को लग(सर) चुकी है। हम यह नहीं कहते कि आज का हर इन्सान भष्ट है लेकिन जाने अनजाने में ही सही, पर वो इस भष्टाचारी समाज का हिस्सा बन चुका है।
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योगेश पाण्डेय
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