आज दो ही वर्ग हैं,दो ही वर्ण हैं,दो ही जातियां है,दो ही धर्म हैं पूरी दुनिया में एक मालिक और एक मजदूर। एक शोषित और एक शोषक,बाकी सब मिथ्या है।। बदबूदार गन्दी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर मजदूर और उन बस्तियों की नीव पर खड़े हुए गगनचुम्बी इमारतों में रहता शोषक मालिकों का वर्ग।। जन्म से ही इन अमीरों ने उसके मन में एक बार भर दी की तुम गन्दी नाली के कीड़े हो और इसी गटर में घुट घुट कर मरने के लिए पैदा हुए हो।। धीरे धीरे ये बाते उनके डीएनए में आ गयी की उनकी नियति वही है।। सत्य ये है की शोषको और मालिकों की नीतिया सर्वदा मजदूर विरोधी रही है यदि ऐसा न हो तो वो मालिक बन ही न पाए यदि ऐसा न हो तो उनके महलो को बनाने वाले गंदी बजबजाती बस्तियों में जहरीली शराब पी के नहीं मरते।। आप हम भी पढ़े लिखे उन्ही मजदूरों की अगली पौध हैं,बस मजदूरी थोड़ी ऊँची है और मकान अपेक्षाकृत साफ़ मगर एक अवकाश का प्रार्थना पत्र आप को आपकी औकात बता देता की न तो मालिको का डीएनए बदला न ही मजदूरों का.. बदलना होगा अन्यथा संतुलन बिगड़ेगा और बिगड़े संतुलन की कोख में पलती है "बोस्टन की चाय पार्टी" और छद्म विकृत माओवाद की अगली विकृत राजनैतिक पौध...
मजदूर दिवस की शुभकामनाएं..
आशुतोष की कलम से
01 मई, 2016
मजदूर दिवस

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